![H1B, L1 वीजा धारकों के लिए बुरी खबर! ट्रंप ने बढ़ाई भारतीयों की टेंशन](https://destinationnortheast.co.in/wp-content/uploads/2025/02/us-h1b-l1-visa-renewal-republican-proposal-impact-over-other-people-specially-indian-1024x576.jpg)
अमेरिका में वीजा नीतियों को लेकर बड़ा अपडेट आया है, जो खासतौर पर भारतीय H-1B और L-1 वीजा धारकों के लिए चिंता का विषय बन सकता है। रिपब्लिकन सीनेटर रिक स्कॉट और जॉन कैनेडी ने एक प्रस्ताव पेश किया है, जिसका उद्देश्य बाइडेन प्रशासन द्वारा लागू किए गए वर्क परमिट की ऑटोमेटिक रिन्यूअल अवधि को 540 दिन तक बढ़ाने वाले नियम को पलटना है। अगर यह प्रस्ताव पारित हो जाता है, तो H-1B और L-1 वीजा धारकों के लिए अमेरिका में नौकरी बनाए रखना कठिन हो सकता है।
H-1B और L-1 वीजा धारकों के लिए नया संकट
बाइडेन प्रशासन ने पहले वर्क परमिट की ऑटोमेटिक रिन्यूअल अवधि को 180 दिनों से बढ़ाकर 540 दिन कर दिया था। इस कदम का मुख्य उद्देश्य उन वीजा धारकों को राहत देना था, जिनका वर्क परमिट रिन्यूअल प्रक्रिया में होता है, ताकि वे इस अवधि में कानूनी रूप से काम कर सकें और उनकी नौकरी को खतरा न हो। लेकिन अब रिपब्लिकन सीनेटरों ने इस नियम को पलटने की मांग की है।
सीनेटर जॉन कैनेडी ने इसे “खतरनाक” बताते हुए कहा कि यह ट्रंप प्रशासन की कड़ी आव्रजन नीतियों को कमजोर करता है। उनका मानना है कि वर्क परमिट की ऑटोमेटिक रिन्यूअल अवधि बढ़ने से अमेरिका में अवैध रूप से रह रहे लोगों पर निगरानी रखना कठिन हो जाएगा। अगर यह प्रस्ताव मंजूर हो जाता है, तो H-1B और L-1 वीजा धारकों को भारी परेशानियों का सामना करना पड़ सकता है।
भारतीय पेशेवरों पर संभावित प्रभाव
H-1B और L-1 वीजा का सबसे ज्यादा लाभ भारतीय पेशेवरों को मिलता है। 2023 में जारी किए गए H-1B वीजा में से 72% भारतीय नागरिकों को मिले थे। इसी तरह, L-1 वीजा धारकों में भी भारतीयों की संख्या सबसे ज्यादा थी। IT, इंजीनियरिंग, फाइनेंस और अन्य महत्वपूर्ण क्षेत्रों में काम करने वाले भारतीय पेशेवरों के लिए यह बदलाव बड़ी चुनौती बन सकता है।
H-1B वीजा धारकों को अपने वर्क परमिट के रिन्यूअल में पहले ही लंबी प्रतीक्षा सूची का सामना करना पड़ता है। अगर 540 दिनों की ऑटोमेटिक रिन्यूअल अवधि को फिर से 180 दिन कर दिया जाता है, तो उनकी नौकरी अस्थिर हो सकती है और उन्हें अमेरिका में कानूनी रूप से काम करने में कठिनाइयों का सामना करना पड़ सकता है।
बाइडेन प्रशासन का रुख और संभावित प्रतिक्रियाएं
बाइडेन प्रशासन ने जब वर्क परमिट की ऑटोमेटिक रिन्यूअल अवधि बढ़ाई थी, तब इसका समर्थन किया गया था कि इससे पेशेवरों और उनके नियोक्ताओं को राहत मिलेगी। कई टेक कंपनियां और बिजनेस ग्रुप इस बदलाव को जरूरी मानते हैं, क्योंकि अमेरिका में कई महत्वपूर्ण पदों पर विदेशी पेशेवर कार्यरत हैं।
हालांकि, रिपब्लिकन सीनेटर इस नियम को बदलने के लिए जोर दे रहे हैं। अब यह देखना दिलचस्प होगा कि अमेरिकी कांग्रेस और सीनेट इस प्रस्ताव पर क्या रुख अपनाते हैं। अगर यह प्रस्ताव पारित होता है, तो हजारों भारतीय पेशेवरों को अपने भविष्य को लेकर अनिश्चितता का सामना करना पड़ सकता है।
H-1B, L-1 और अन्य संबंधित वीजा क्या हैं?
अमेरिका में विभिन्न प्रकार के वीजा कार्यक्रम विदेशी पेशेवरों और उनके परिवारों को काम करने और रहने की अनुमति देते हैं। इनमें सबसे प्रमुख H-1B और L-1 वीजा हैं, जिनका उपयोग मुख्य रूप से भारतीय आईटी और अन्य पेशेवर क्षेत्रों के लोग करते हैं।
H-1B वीजा उच्च कुशल विदेशी कर्मचारियों के लिए होता है, जो टेक्नोलॉजी, इंजीनियरिंग, फाइनेंस और अन्य महत्वपूर्ण क्षेत्रों में काम करते हैं। इसी तरह, L-1 वीजा उन कर्मचारियों के लिए होता है, जिन्हें मल्टीनेशनल कंपनियां अमेरिका में अपनी शाखाओं में स्थानांतरित करती हैं। H-4 और L-2 वीजा उनके परिवार के सदस्यों के लिए होते हैं, जो अमेरिका में रहने, पढ़ाई करने और कुछ मामलों में काम करने की अनुमति प्रदान करते हैं।
टेक इंडस्ट्री और कंपनियों पर प्रभाव
अगर वीजा रिन्यूअल की अवधि घटाई जाती है, तो इसका सीधा असर अमेरिका की टेक इंडस्ट्री और कई बड़ी कंपनियों पर पड़ सकता है। गूगल, माइक्रोसॉफ्ट, ऐप्पल, अमेज़न जैसी कंपनियों में हजारों भारतीय पेशेवर काम करते हैं, जो H-1B और L-1 वीजा पर निर्भर हैं। वीजा रिन्यूअल प्रक्रिया जटिल होने पर कंपनियों को नई प्रतिभाओं की भर्ती में मुश्किल होगी और इसका असर अमेरिका की अर्थव्यवस्था पर भी पड़ सकता है।
क्या आगे हो सकता है?
अब इस प्रस्ताव को लेकर राजनीतिक बहस तेज हो सकती है। डेमोक्रेट्स इस नियम को बनाए रखने की कोशिश करेंगे, जबकि रिपब्लिकन इसे बदलने के लिए दबाव डाल रहे हैं। आने वाले हफ्तों में अमेरिकी संसद में इस प्रस्ताव पर चर्चा होगी, जिसके नतीजे भारतीय पेशेवरों और अमेरिकी कंपनियों के लिए बेहद महत्वपूर्ण होंगे।