![सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर बड़ी पहल, सम्मान से मरने का अधिकार, कर्नाटक बना पहला राज्य](https://destinationnortheast.co.in/wp-content/uploads/2025/02/karnataka-first-state-to-notify-sc-ruling-over-right-to-die-with-dignity-1024x576.jpg)
कर्नाटक ऐसा पहला राज्य बन गया है जिसने सुप्रीम कोर्ट के ‘सम्मान से मरने के अधिकार’ (Right to Die with Dignity) के आदेश को लागू करने का निर्णय लिया है। यह अधिकार उन गंभीर रूप से बीमार मरीजों को मिलेगा जिनका इलाज संभव नहीं है और जो जीवनरक्षक प्रणाली (Life Support System) पर निर्भर हैं। कर्नाटक सरकार के स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्री दिनेश गुंडूराव ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स (X) पर इस फैसले की घोषणा की।
सुप्रीम कोर्ट का फैसला: क्या है ‘सम्मान से मरने का अधिकार’?
जनवरी 2023 में सुप्रीम कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसला सुनाते हुए कहा था कि ऐसे मरीज, जिनकी हालत में किसी भी प्रकार का सुधार संभव नहीं है और जीवनरक्षक चिकित्सा से भी कोई लाभ नहीं हो रहा है, उन्हें ‘सम्मानपूर्वक मृत्यु’ का अधिकार मिलना चाहिए। इस फैसले के तहत मरीज अपने दो नामित व्यक्तियों को यह अधिकार दे सकते हैं कि वे उनके मेडिकल ट्रीटमेंट से संबंधित निर्णय ले सकें। यदि मरीज स्वयं निर्णय लेने की स्थिति में नहीं होता, तो उसके नामित व्यक्ति की सहमति आवश्यक होगी। हालांकि, अंतिम निर्णय विशेषज्ञ डॉक्टरों की समिति ही करेगी।
सरकार ने जारी किया आदेश, अस्पतालों पर होगा लागू
गुरुवार को कर्नाटक सरकार ने इस आदेश को लागू करने का ऐलान किया और स्पष्ट किया कि यह सरकारी और निजी दोनों प्रकार के अस्पतालों में प्रभावी होगा। जिन भी अस्पतालों में ऐसे मरीजों का इलाज किया जा रहा है, उन पर यह आदेश लागू किया जाएगा। यह निर्णय असाध्य बीमारी से जूझ रहे मरीजों और उनके परिवारों के लिए राहत भरा साबित होगा।
कैसे होगा ‘सम्मानपूर्वक मृत्यु’ का फैसला?
सुप्रीम कोर्ट के निर्देशानुसार, इस प्रक्रिया को लागू करने के लिए दो मेडिकल बोर्ड बनाए जाएंगे:
- प्राथमिक बोर्ड (Primary Board): अस्पताल स्तर पर यह बोर्ड गठित किया जाएगा, जिसमें मेडिकल विशेषज्ञ शामिल होंगे।
- सेकंड्री बोर्ड (Secondary Board): जिला स्तर पर यह बोर्ड बनाया जाएगा, जिसमें न्यूरोलॉजिस्ट, न्यूरोसर्जन, एनेस्थेसियोलॉजिस्ट और इंटेंसिविस्ट शामिल होंगे।
सरकार ने अपने आदेश में कहा कि कोई भी व्यक्ति, जो ‘ट्रांसप्लांटेशन ऑफ ह्यूमन ऑर्गन ऐंड टिशूज ऐक्ट’ के तहत स्वीकृत विशेषज्ञ है, वह इस सेकंड्री बोर्ड का सदस्य हो सकता है। बोर्ड के सदस्यों की नियुक्ति जिला स्वास्थ्य अधिकारी (District Health Officer) द्वारा की जाएगी।
अन्य राज्य भी लागू करने की कर रहे हैं योजना
जानकारों का कहना है कि महाराष्ट्र, गोवा और केरल भी सुप्रीम कोर्ट के इस निर्देश को लागू करने की योजना बना रहे हैं। हालांकि, कर्नाटक इस दिशा में कदम बढ़ाने वाला पहला राज्य बन गया है। इससे डॉक्टरों और मरीजों के परिजनों को कठिन परिस्थितियों में निर्णय लेने में आसानी होगी।
कैसे करेगा यह फैसला मरीजों की मदद?
यह फैसला गंभीर रूप से बीमार मरीजों को अनावश्यक जीवनरक्षक प्रणाली से मुक्ति देकर उन्हें गरिमा के साथ अंतिम समय बिताने का अवसर देगा। इससे उनके परिवारजनों पर मानसिक और आर्थिक बोझ भी कम होगा। डॉक्टरों के लिए भी कठिन निर्णय लेना आसान होगा और असाध्य बीमारी से जूझ रहे मरीजों को ‘सम्मानपूर्वक मृत्यु’ का विकल्प मिलेगा।
निर्णय लेने की प्रक्रिया
इस प्रक्रिया के तहत मरीज को यह अधिकार होगा कि वह अपने दो विश्वसनीय व्यक्तियों को नामित कर सके, जो उसके चिकित्सा से जुड़े निर्णय ले सकें। यदि मरीज स्वयं निर्णय लेने की स्थिति में नहीं है, तो इन नामित व्यक्तियों की सहमति आवश्यक होगी। प्राथमिक मेडिकल बोर्ड अस्पताल स्तर पर इस मामले का मूल्यांकन करेगा और उसके बाद जिला स्तर पर सेकंड्री बोर्ड इस निर्णय को मान्यता देगा। अंततः, विशेषज्ञ डॉक्टरों की टीम इस पर अंतिम निर्णय लेगी।
क्या कहता है सुप्रीम कोर्ट का आदेश?
सुप्रीम कोर्ट ने यह स्पष्ट किया था कि जीवनरक्षक प्रणाली हटाने या मरीज को ‘सम्मानपूर्वक मृत्यु’ देने का निर्णय केवल विशेषज्ञ डॉक्टरों द्वारा किया जाना चाहिए। यह प्रक्रिया मरीज के अधिकारों की रक्षा करेगी और अनावश्यक इलाज को रोकेगी।